” Europa Bhowmik वह नाम है जिसने भारत जैसे पितृ सत्तात्मक समाज मे अपनी योग्यता और मेहनत के दम पर वह मुकाम हासिल किया है जिस पर अभी तक पुरुषों का ही वर्चस्व रहा है ।”
Europa Bhowmik महिला बॉडीबिल्डर
भारतीय समाज मे लड़कियों को शुरू से ही खाना बनाना, परिवार की देखभाल करना जैसे घरेलू काम ही सिखाये जाते थे। युवा होने पर उनकी शादी कर दी जाती थी और फिर नये परिवार की देखभाल मे ही अपना सम्पूर्ण जीवन खपा देती थीं। सदियों से ऐसा होता आ रहा था। परन्तु आधुनिक परिवेश जहां महिलाएं समान अधिकारों को लेकर अपनी योग्यता साबित कर रही है वहीं समाज के इस पुराने ढर्रे को भी बदल रही हैं।
यूरोपा भौमिक जैसी भारतीय बेटियां न केवल कंधें से कंधा मिलाकर चल रही है बल्कि हर क्षेत्र मे प्रतिस्पर्धा करके योग्यता साबित कर रही है। वे क्रांतिकारी है और एक बेहतर कल के प्रति आशान्वित है।
ऐसी ही भारतीय बेटियों मे एक नाम यूरोपा भौमिक का है जो भारत की ‘ Youngest Female Bodybuilder ‘ है। उन्होंने एशियन बॉडीबिल्डिंग और फिजिक स्पोर्टस चैम्पियनशिप में रजत पदक हासिल किया।
Europa Bhowmik के जन्म की कहानी
Europa Bhowmik
का जन्म समुद्र की लहरों के बीच सेमको यूरोपा नामक जहाज पर हुआ। इनके माता पिता इस समुद्री जहाज पर यात्रा कर रहे थे और यहीं पर इनकी मां गर्भवती हुयी। जहाज के चालक दल ने फैसला किया यदि लड़का हुआ तो उसका नाम सैम होगा और यदि लड़की हुई तब उसका नाम यूरोपा रखेंगे।
कुछ समय उपरांत एक खूबसूरत कन्या ने जन्म लिया जिसका नाम उन्होंने Europa Bhowmik रखा।
बचपन Europa Bhowmik
का बचपन बहुत कठिनाइयों मे गुजरा। वह कद काठी मे छोटी और दुबली पतली थी। उन्हें उन बदमाशों से भी निबटना पड़ता था जो अकसर उन्हें परेशान करते थे। किशोरावस्था मे कदम रखते ही वह एनोरेक्सिया नामक रोग से पीड़ित हो गयीं। यह आहार मे कटौती और अपने भोजन और वजन के प्रति जूनून के कारण होता है। वह निराशा मे डूब गई। यह सब उनके साथ युवावस्था मे हो रहा था जबकि उनकी आंखों मे बहुत सारे सपने थे।
अपने भाग्य का निर्माण
Europa Bhowmik को जिंदगी के इस कठिन दौर से निकालने मे उनकी मां ने उनकी बहुत मदद की। अपनी मां से जहां एक ओर उन्हें भावनात्मक सपोर्ट मिला दूसरी और उनकी डाइट का भी ध्यान भी वह अच्छी तरह से रख रही थी।
यूरोपा अब तक अपनी मां की सलाह से एक जिम ज्वाइन कर चुकी थी। संतुलित भोजन और जिम ट्रेनर की मदद से वह अपने शरीर को मजबूत कर रही थी। अब वह अच्छा महसूस कर रही थी। जिम मे निरंतर कठिन परिश्रम और प्रशिक्षण से अब उनके अंदर गजब का आत्मविश्वास आ गया था। और उनके माता पिता ये सब देखकर बहुत खुश थे। वे खुश थे कि उनकी बेटी अपने बुरे दौर से बाहर आ चुकी है।
यूरोपा की आंखों मे आत्मविश्वास झलक रहा था अब वह अपने आप को साबित करना चाहती थी। उसके मन मे कुछ और चल रहा था। वह कुछ बडा़ काम करना चाहती थी सचमुच मे बड़ा।
उन्होंने अपने मिशन की चर्चा अपने माता पिता की। उनके माता पिता हर तरह से अपनी बेटी टा समर्थन और मदद को तैयार हो गये।
उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की बाडीबिल्डिंग प्रतियोगिता के लिये तैयारियां शुरू कर दी। एक कठिन लक्ष्य उन्होंने चुन लिया था। अब वे और अधिक कठोर परिश्रम कर रही थी।
आखिर वह दिन भी आ गया जब यूरोपा भौमिक कर्नाटक के बेलगाम मे अपनी पहली राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता भाग लिया । यहां उनक प्रदर्शन काफी अच्छा रहा लेकिन वह अंतिम तीन मे अपना स्थान न बना सकी लेकिन वह इससे विचलित नहीं हुयी। यहां पर उनकी मुलाकात इंद्रनील मैटी से हुयी जो आगे के लिए प्रशिक्षण देने और कोच बनने के लिए तैयार हो गये ताकि अगली बार वह और अच्छा प्रदर्शन कर सके।
यूरोपा ने पिछली हार से सबक लेते हुए एक बार फिर से अपनी तैयारियां शुरू कर दी। भाग्य पर भरोसा छोडकर वह सघन अभ्यास मे जुप गई और अंत मे वह दिन भी आ गया जब दक्षिण कोरिया मे होने वाली 51वीं एशियन बाडीबिल्डंग प्रतियोगिता मे उन्होंने तीसरा स्थान प्राप्त किया।
’19 वर्षीय Europa Bhowmik ने दुनिया को दिखा दिया कि जब आप अपनी आलोचनाओं को अपनी प्रेरणाशक्ति बना ले तब दुनियां कोई ताकत तुम्हें नहीं रोक सकती है।’