कबीर दास के दोहे अर्थ सहित- Kabir ke Dohe with hindi meaning.
कबीर के दोहे ( Kabir ke dohe with hindi meaning ) के बारे मे जानने से पहले हम थोडा़ जान लेते है कि कबीर दास कौन थे।

कबीर भक्तिकाल के रहस्यवादी सूफी संत व कवि थे। उन्होंने तत्कालीन हिन्दू व मुस्लिम समाज मे फैली कुरितियों का विरोध अपनी रचनाओं के माध्यम से किया। उनके बारे मे संक्षिप्त जानकारी निम्न प्रकार है,
नाम : कबीर
जन्म : 1398, काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु : 1518, मगहर
रचनायें : बीजक, कबीर ग्रंथावली, कबीर बीजावली, साखी
कबीर ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज मे फैले आडम्बर और कुरितियों का विरोध किया था, जिन्हें हम कबीर के दोहे के नाम से जानते हैं, आइये उनके ऐसे ही दोहों के अर्थ समेत उनके बारे मे जानते हैं।
कबीर के दोहे#1.( Kabir ke dohe with hindi meaning )
बुरा जो देखन मै चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
भावार्थ: कबीर दास कहते हैं सारे जीवन मे, मैं दूसरों मे बुराइयां, कमियां ही खोजता रहा हूं, लेकिन जब मैंने अपने अंदर झांककर देखा तो पाया कि समस्त संसार की बुराइयां मेरे अंदर है और जितनी बुराइयां मेरे अंदर है उतनी और किसी मे भी नहीं है। वे हमारे लिए इशारा कर रहे है दुसरों की बुराइयां देखने से पहले एक बार अपने अंदर झांककर जरूर देख लेना चाहिए।
कबीर के दोहे#2.
काल करे से आज कर, आज करे सो अब।
पल मे परलय होयेगी, बहुरि करेगा कब।।
भावार्थ: समय की महत्ता को बताते हुए कबीर दास हमें चेताते हुये कहते है, कल का आज करले और आज का काम अभी करले, नही तो परलय होने पर तेरे सारे काम अधूरे रह जायेंगे। इसलिये काम को कभी टालो नहीं।
कबीर के दोहे#3.(Kabir ke dohe with hindi meaning )
साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार- सार को गहि रहे ,थोथा देय उडाय।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते है सदगुणी पुरूष का स्वभाव सूप के जैसा होना चाहिए, जिस प्रकार सूप अनाज के दानों को बेकार को भूसे और छिलकों से अलग कर देता है, उसी प्रकार सज्जन पुरुषों को ज्ञान की बातें को गृहण करके बेकार की बातों को छोड़ देनाा चाहिए।
कबीर के दोहे#4.
सांई इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाय।
मै भी भूखा ना रहूं, साधू न भूखा जाय।।
अर्थ: कबीर दास जी भगवान से प्रार्थना करते हुये कहते है, हे भगवन मुझे धन दौलत की लालसा नहीं है, मुझे तो बस इतना देना जिससे मेरे परिवार का भरण पोषण हो जाये और मेरे यहाँ से कोई भूखा पेट न जाये।
कबीर के दोहे#5. (Kabir ke dohe with hindi meaning )
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय ।।
अर्थ: यहां पर कबीर दास जी गुरु की महिमा बताते हुये कहतें हैं, यदि आपके सामने गुरु और भगवान दोनों खड़ें हो तो तुम पहले किसके चरण स्पर्श करोगे, उन्होंने ( गुरु ) हमे भगवान तक जाने का रास्ता बताया है अतः गुरु का स्थान भगवान से भी उपर है, अतः गुरु प्रथम वंदनीय है।
कबीर के दोहे#6.
धरती सब कागद करूं, लेखनी सब वनराय।
सात समुद की मसि करूं, गुन लिखा न जाय।।
अर्थ: यहां भी गुरू की महिमा का गुणगान करते हुये कबीर दास जी कहते है अगर पूरी पृथ्वी को कागज बना लिया जाय , सारे जंगल की की कलम बना ली जाये और समस्त सागर की स्याही बनाकर गुरू के गुणों को लिखें, फिर भी गुरू के पूरे गुण नहीं लिखे जा सकते हैं।
कबीर के दोहे#7.(Kabir ke dohe with hindi meaning )
बडा़ भया तो क्या भया जैस पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।।
अर्थ: कबीर दास कहते है ऐसे बडा़ होने का कोई फायदा नहीं है, अगर आप किसी का भला नहीं कर रहे हैं, जिस प्रकार खजूर का पेड़ बहुत बडा होता है लेकिन उसकी छाया किसी पथिक को नहीं मिल पाती है, और उसके फल भी बहुत उंचाई पर लगने से आपको उसका फायदा नहीं मिल पाता है।
कबीर के दोहे#8.
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहुं, शीतल होय।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते है मनुष्य को हमेशा ऐसी भाषा बोलनी चाहिए औरों को सकून और आराम पहुंचाये, जो उनका गुस्सा शांत करें, ऐसी भाषा का प्रयोग करे जो दूसरों को अच्छी लगे तथा खुद को भी आनंद पहुंचाये।
कबीर के दोहे#9.
निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटि छवाए।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं निंदक, दूसरों की बुराई करने वाले को हमेशा अपने पास रखना चाहिए। ऐसे लोग आपकी कमियों को बताकर आपकी निंदा करते रहेंगे और आपको अपनी कमियों को दूर करने का अवसर मिलेगा, यह आपके लिये बिना साबुन और पानी के अपने घर को साफ रखने जैसा है। वैसे ही निंदक के पास रहने पर अपने आप को निर्मल रख सकते हैं।
कबीर के दोहे#10.(Kabir ke dohe with hindi meaning )
चलती चाकी देख के, दिया कबीरा रोय।
दो पाटन के बीच मे, साबुत बचा न कोय।।
अर्थ: चलती चक्की को देख कर कबीर दास के आंसू निकल जाये ह़ैं, जिस प्रकार दो पाटो के बीच कुछ भी साबुत नहीं रहता उसी प्रकार दो समूहों के बीच मे आने से कुछ भी नहीं बचता है।
कबीर के दोहे#11.
दुख मे सुमिरन सब करे, सुख मे करे न कोय।
जो सुख मे सुमिरन करे, दुख काहे को होय।।
अर्थ: दुख मे सभी भगवान को याद करते है। कबीर दास जी कहते है कि अगर सुख मे याद किया होता तो दुख आता ही नहीं।
कबीर के दोहे#12.(Kabir ke dohe with hindi meaning )
माटी कहे कुम्हार से,तू क्या रोंदे मोहे ।
इक दिन ऐसा आयेगा, मैं रोदंगी तोहे।।
अर्थ: मिट्टी के वर्तन बनाते वक्त , मिट्टी कुम्हार से कहती है आज तू मुझे रोंद रहा, एक वक्त ऐसा भी आयेगा जब तू इसी मिट्टी मे विलीन हो जायेगा।
कबीर के दोहे#13.
जाति न पुछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पडा़ रहन दो म्यान।।
अर्थ: कबीर दास कहते हैं ज्ञानी पुरूष की जाति के बारे मे कभी नहीं पूछना चाहिए, उससे ज्ञान की बातें कीजिए, मोल हमेशा तलवार का करो, म्यान को रहने दो।
कबीर के दोहे#14.(Kabir ke dohe with hindi meaning )
जल मे बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश।
जो है जाको भावना, सो ताहि के पास ।।
अर्थ: कमल जल मे खिलता है और चंद्रमा आकाश मे रहता है, कबीर दास कहते है चंद्रमा का प्रतिबिंब जब जल मे बनता है तब इतनी दूरी होने के बावजूद ऐसा लगता है, जैसे चंद्रमा खुद कमल के पास चला आया हो। वैसे ही जब कोई मनुष्य भगवान से प्रेम करता है, तब भगवान भी खुद उसके पास चर कर आते हैं।
कबीर के दोहे#15.(Kabir ke dohe with hindi meaning )
ते दिन गये अकारथ ही, संगत भई न संग।
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत।।
अर्थ: कबीर कहते हैं बिना सत्संग और अच्छे काम के अबतक का जीवन बेकार चला चला गया है, प्रेम और भक्ति के बिना मनुष्य का जीवन पशु के समान है, भक्ति करने वाले मनुष्य के ह्रदय मे भगवान वास करते हैं।
कबीर के दोहे#16.
तीरथ गये से एक फल, संत मिले फल चार।
सदगुरु मिले अनेक फल, कह कबीर विचार।।
अर्थ: कबीर कहते है तीर्थ जाने से एक पुण्य और संत के मिलने से चार पुण्य मिलते है, लेकिन सदगुरू के मिलने से अनेकों पुण्य मिलते हैं।
कबीर के दोहे#17.(Kabir ke dohe with hindi meaning )
जिन घर साधू न पुजिए,घर की सेवा नाही ।
ते घर मरघट जानिए, भूत बसे तिन माही।।
अर्थ: कबीर दास कहते हे जिस घर मे साधू और सत्य की पूजा नहीं होती वहां पाप बसता है, ऐसा घर मरघट के समान है, वहां दिन मे ही भूत बसते हैं।
कबीर के दोहे#18.
प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए ।
राजा प्रजा जो ही रूचे, सिस देही ले जाए।।
अर्थ: कबीर दास कहते हैं प्रेम नतो खेतों मे उगता है और नहीं बाजार मे बिकता है, प्रेम के लिये अपना क्रोध इच्छा काम भय को त्यागना पडता है।
कबीर के दोहे#19.(Kabir ke dohe with hindi meaning )
जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मै नाही।
सब अंधियारा मिट गया, दीपक देखा माही।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं, जब मेरे अंदर अहंकार था, तब भगवान का वास नहीं था। अब मेरे अंदर ईश्वर का का वास है तो अब अहंकार खत्म हो गया है। जब से मैने गुरू समान दीपक को पाया है मेरे अंदर का समस्त अंधियारा, अहंकार मिट गया है।
कबीर के दोहे#20.(Kabir ke dohe with hindi meaning )
तिनका कबहुं न निंदये, जो पांव तले होय।
कबहुं उड़ आंखों पड़े, पीर घनेरी होया।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं, पांव के नीचे आने वाले तिनके की आलोचना कभी नहीं करनी चाहिए, वो तिनका हवा से उड़के अगर आंखों मे पड़ जाये तो बहुत दर्द देता है, उसी प्रकार किसी गरीब या कमजोर ब्यक्ति का आलोचना नहीं करनी चाहिए।
कबीर के दोहे#21.
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़ें सो पंडित होय।।
अर्थ: कबीर दास कहते हैं किताबे पढ़कर शिक्षा ग्रहण कर लेने से कोई ज्ञानी नहीं हो जाता है, जिसने प्रेम रूपी ढाई अक्षर का ज्ञान प्राप्त कर लिया वही सबसे बडा़ ज्ञानी है।
कबीर के दोहे#22.(Kabir ke dohe with hindi meaning )
जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ ।
मैं बपुरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ ।।
अर्थ: निरंतर प्रयास करने वाले को सफलता मिल ही जाती है जिस प्रकार गोताखोर जब गहरे पानी मे जाता है तो कुछ न कुछ लेकर जरूर आता है, लेकिन जो लोग डूब जाने के भय से किनारे बैठे रहते है उनके हाथ कुछ नहीं लगता है।
कबीर के दोहे#23.(Kabir ke dohe with hindi meaning )
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ।।
अर्थ: कबीर दास जी कहते है न तो ज्यादा बोलना अच्छा रहता है और न ही ज्यादा चुप रहना, जैसे ज्यादा बारिश ठीक नहीं होती है, और न ज्यादा धूप अच्छी रहती है।
कबीर के दोहे#24.
संत न छोड़े संतई ,जो कोटिक मिले असंत।
चंदन भुजंगा बैठिया,तऊ शीतलता न तजंत ।।
अर्थ: सज्जन पुरुष को करोड़ों दुष्ट ब्यक्ति भी मिल जाये तब भी वह अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता है जिस प्रकार चंदन का पेड़ सांपों के लिपटे रहने पर भी अपनी शीतलता नहीं छोड़ता है।
कबीर के दोहे#25.(Kabir ke dohe with hindi meaning )
कबीरा खडा़ बाजार मे, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर ।।
अर्थ: कबीर दास जी इस संसार मे सबका भला चाहते है, और अगर किसी से दोस्ती नहीं तो किसी से बैर भी न हो।
दोस्तों आपको कबीर के दोहे ( Kabir ke dohe with hindi meaning ) कैसी लगी। प्रेरणादायक इन दोहो के बारे मे नीचे कमेंट मे जरूर बतायें।