Kashmiri Pandits History in Hindi. कौन हैं कश्मीरी पंडित और क्या है उनका इतिहास ( पलायन )

Kashmiri Pandits History in Hindi- दुनियां के किसी भी कोने में शायद हि ऐसी मिसाल देखने को मिले जहाँ देशवासी अपने ही देश में शरणार्थी बने हो और बदतरीन जिंदगी जीने पर मजबूर हुए हो, कश्मीरी पंडित 1990 के दशक में ऐसी त्रासदी का शिकार हो चुके है, और आज भी शरणार्थियों जैसा जीवन जीने पर मजबूर है।
उस वक्त उनके साथ क्या हुआ था इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को थी, लेकिन हिंदी फिल्म डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित फिल्म ” द कश्मीर फाइल्स ” के रिलीज के साथ ही देशवासी हैरान और आक्रोशित है, वहीँ कश्मीरी पंडित फ़िल्मी परेड पर अपने साथ हुयी बर्बरता और हैवानियत को देखकर दुःख और सदमे में है, उनके आंसू रोके नहीं रुक रहे है, आज के इस लेख में उस वक्त हुई घटना के बारे बताने की कोशिश करेंगे , मैंने कोशिश करेंगे शब्द का प्रयोग इसलिए किया है कि कश्मीरी पंडितों के साथ हुयी बर्बरता को शब्दों में बयान करना संभव नहीं है।
कौन हैं कश्मीरी पंडित (Who are Kashmiri Pandits / Kashmiri Pandits1990)
कश्मीरी पंडित भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू & कश्मीर के मूल निवासी है , ये गौड़ ब्राह्मण हैं और सदियों से कश्मीर घाटी में रह रहे थे, 1990 से पहले ( Kashmiri Pandits 1990 ) कश्मीर घाटी में इनकी संख्या 5 लाख के लगभग थी , जो इस समय घटकर लगभग 5000 के करीब रह गयी है, सरकारी आंकड़ों के हिसाब से लगभग 60000 परिवार यानी कि लगभग 3 .5 लाख के करीब कश्मीरी पंडित 1990 के दशक में घाटी से पलायन ( Kashmiri Pandit Exodus ) कर गए और दिल्ली सहित देश के अलग अलग भागों शरणार्थी बनकर बेहद अपमानजनक जीवन ब्यतीत कर रहें हैं।
कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों पलायन और नरसंहार/
कश्मीरी पंडित कांड ( Kashmiri Pandit Exodus / Kashmiri Pandits Genocide / Kashmiri Pandits Massacre )
19 जनवरी 1990 की वो सर्द सुबह जब कश्मीर में मस्जिदों से सुबह की अजान के बाद नारे गूंजने लगे , ‘यहाँ क्या चलेगा , निज़ाम -ए -मुस्तफा’ ,’ कश्मीर में अगर रहना है तो अल्ल्हाहू अकबर कहना है, ‘ असि गच्छि पाकिस्तान , बटव रोअस त बटनेव सान, यानि हमें पकिस्तान चाहिए और हिन्दू औरतें भी, मगर अपने मर्दों के बिना , आजादी का मतलब क्या , ला ईलाह इल्लला , ऐ जालिमों ऐ काफिरों अब कश्मीर हमारा है, हर जगह से हिन्दुओ के खिलाफ आवाजें आ रहीं थीं और चारों तरफ से पाकिस्तान जिंदाबाद लग रहे थे।
कश्मीरी पंडितों के घरों में बेचैनी फैली हुयी थी , सामान बांधते बांधते बड़ी मुश्किलों से रात गुजारी और सैकड़ों कश्मीरी हिन्दू, पंडितों ने कश्मीर , अपना पुश्तैनी घर छोड़ने का फैसला कर कर लिया। उस रात और सुबह तक सेकड़ो कश्मीरी परिवार अपना घर छोड़ चुके थे। कश्मीरी पंडितों का पलायन ( Kashmiri Pandit Exodus ) कश्मीर से शुरू हो चुका था।
स्थितियां पहले से ही ख़राब होने लगी थी (Kashmiri Pandit Exodus / Kashmiri Pandits Genocide/ Kashmiri Pandits1990)
कश्मीर में हालत पहले से ही ख़राब होने लगी थी ,घाटी में की कश्मीरी पंडितो हत्या ( Kashmiri Pandit Genocide ) का सिलसिला 1989 से ही शुरू हो गया था , कश्मीरी पंडितों के बड़े नेता टीका नाथ टपलू की श्रीनगर में दिनदहाड़े गोली मरकर हत्या कर दी गयी, हत्या का आरोप जे के एल एफ पर लगा पर हुआ कुछ नहीं। हालात बिगड़ते बिगड़ते 1990 तक बहुत ख़राब हो चुके थे।
साल 1987 में चुनावों में कट्टरपंथियों की हार हो गई , समाज ने अपनी मंशा जता दी थी , यह वो वक्त था जब जम्मू और कश्मीर को नए सिरे से संभाला जा सकता था , क्योंकि जनता भी आये दिन होने वाले बम विस्फोटों और हत्याओं से तंग आ चुकी थी।
सरकारी मशीनरी का दुरपयोग और चुनाव में धांधली का आरोप लगा चुनावों के नतीजों का बहिष्कार किया गया , इस्लाम खतरे में का नारा लगा का जनता को बरगलाने की कोशिश की गयी, 1987 में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट की स्थापना हुई, जम्मू कश्मीर को भारत से अलग करने षड़यंत्र अब खुलके सामने आ चुका , अबतक आतंकवादी गतिविधियों का शिकार कश्मीर की पूरी आवाम होती थी लेकिन अब कश्मीरियत नाम की कोई चीज नहीं बची थी , कश्मीरी पंडित, हिन्दू, और सिख कट्टरपंथियों के निशाने पर थे।
सितम्बर 1989 कश्मीरी पंडितो के बड़े नेता टीकालाल टपलू की सरेआम लोगों के सामने गोली मार कर हत्या कर दी गयी , इस सम्बन्ध कोई गिफ्तारी न हो सकी , इसके बाद रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू की ह्त्या कर दी गयी, उन्होंने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल बट्ट को कश्मीरी पंडितों को भागने सिलसिले में फांसी की सजा सुनाई थी, उनकी पत्नी को अगवा कर लिया गया तक कोई पता न चल सका इस केस में वकील प्रेमनाथ भट्ट की हत्या कर दी गयी।
फ़रवरी 1990 में श्रीनगर टेलीविज़न केंद्र के निदेशक लासा कौल की हत्या कर दी गयी, हत्याओं का एक अंतहीन सिलसिला चल पड़ा था जिसमे बड़े छोटे सभी तरह के नागरिक थे। गिरिजा टिक्कू का गैंगरेप हुआ और उसके बाद उसकी हत्या कर दी गयी , इस प्रकार की अनेको घटनाएं हुई।
कश्मीरी पंडितो की जनसँख्या ( kashmiri pandit population / Kashmiri Pandits Genocide)
जम्मू कश्मीर में 20 वीं सदी के पूर्वार्ध में लगभग 10 लाख कश्मीरी पंडित थे , जो 1990 में 5 लाख रह गए, और आज 2022 घटकर 10 हजार से भी कम रह है, जो ये दिखाता है की जम्मू कश्मीर में कश्मीरी पंडितो ,सिखों , हिन्दुओं के खिलाफ साजिश 1990 से पहले से ही चल रही थी, लेकिन जो भीषण नरसंहार और पलायन 1990 में शुरू हुआ , वैसा पहले कभी नहीं हुआ।
आज स्थिति क्या है ?
1990 के बाद भी कुछ लोग वहां रुकना चाहते थे और रुके भी लेकिन 1997, 1998 , 2003 में हुए नरसंहारों ने उनका रहा सहा मनोबल भी तोड़ कर रख दिया, इस बीच सरकारों ने भी कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ रहत पैकजों की घोषणा की लेकिन वे नाकाफी थे, केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद दो हजार करोड़ लोगों के पुनर्वास के लिए राशि घोषित की गयी, उससे भी कोई खास नतीजा सामने नहीं आया , क्योंकि मुख्य समस्या सिक्यॉरिटी को लेकर थी, और उसमे कोई सुधार नहीं है। पिछले 30 सालों में दो तीन परिवार ही वहां लौटे हैं। अपराधियों पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है, वे खुलेआम समाज में चैन की जिंदगी जी रहे हैं। इससे लग रहा है सरकारी सिस्टम भी लोगों को बचा पाने में नाकाम रहा है।
उस वक्त किसकी सरकार थी ( कश्मीरी पंडित कांड किसकी सरकार थी )
1987 में फारुख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने, लगा था कि स्थितियां ठीक हो जाएँगी लेकिन ऐसा न हो सका, केंद्र में उस वक्त वी पी सिंह की सरकार थी. गृह मंत्री थे मुफ़्ती मोहम्मद सईद , जिनकी बेटी रुबैया सईद का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था और उसके बाद बेटी रुबैया सईद की रिहाई के बदले कई आतंकवादियों को छोड़ा गया।
कश्मीरी पंडितों के पलायन ( Kashmiri Pandit Exodus ) और उनके नरसंहार ( Kashmiri Pandits Genocide) जम्मू कश्मीर और भारत के इतिहास में बदनुमा दाग है, कश्मीरी पंडितों का विश्वाश बहाल करने के लिए बहुत कुछ किया जाना चाहिए, जिसकी अभीतक शुरुआत भी नहीं हुई है। हिंदी फिल्म डाइरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म ‘ द कश्मीर फाइल्स ‘ बनाकर उस त्रासदी ( Kashmiri Pandits History in Hindi ) को लोगो के सामने लाने का प्रयास किया है।