मसाला किंग के नाम से मशहूर ” MDH मसाला ” के मालिक महाशय Dharmpal Gulati का जन्म सियालकोट पाकिस्तान में 27 मार्च 1923 में हुआ था, महाशय धर्मपाल गुलाटी का जीवन उतार चढ़ाव , संघर्ष, परिश्रम और सफलता से भरपूर रहा है, उनकी सफलता की हम सभी के लिए प्रेरणादायी है।
घर घर में पाया जाने वाला MDH मसाला , महाशय धर्मपाल गुलाटी ( Dharmpal गुलाटी ) के सफलता की कहानी बयान करता है, लेकिन ये सफलता उन्हें आसानी से नहीं मिली, कभी जीवन यापन के लिए उन्हें तांगा भी चलाना पड़ा था, आइये उनके जीवन के बारे में कुछ तथ्य जानते हैं।
नाम : धर्मपाल गुलाटी ( Dharmpal Gulati )
उप नाम : मसाला किंग, दादाजी, महाशय धर्मपाल , मसलों के राजा
जन्म : 27 मार्च 1923
जन्म स्थान : सियालकोट , पाकिस्तान
मृत्यु तिथि : 3 दिसंबर 2020
मृत्यु का कारण : दिल का दौरा
गृहनगर : दिल्ली
राष्ट्रीयता : भारतीय
धर्मं : हिन्दू
शिक्षा : पांचवीं ( पढाई बीच में ही छोड़ दी )
शौक : पतंग उड़ना, पहलवानी करना
पत्नी का नाम : लीलावंती
बेटों का नाम : संजीव गुलाटी, राजीव गुलाटी
माता का नाम : चानन देवी
पिता का नाम : महाशय चुन्नीलाल
भाई बहन : सतपाल गुलाटी, धर्मवीर गुलाटी
पुरस्कार : वर्ष 2016 इन्डियन ऑफ़ द ईयर
नेट वर्थ : 940 करोड़
महाशय धर्मपाल गुलाटी ( Dharmpal Gulati ) का जन्म एवं शिक्षा
महाशय धर्मपाल गुलाटी( Dharmpal Gulati ) का जन्म पाकिस्तान के सियालकोट में एक साधारण से परिवार में हुआ था, इनकी माँ का नाम चनन देवी तथा पिता का नाम महाशय चुन्नी लाल था, इनके पिता की सियालकोट में ” महाशयां दी हट्टी ” नाम से मिर्च मसलों की दुकान थी।
महाशय धर्मपाल को पढाई लिखाई में विशेष रूचि नहीं थी, जिसकी वजह से वे 5th स्टैण्डर्ड से आगे नहीं पढ़ पाए। पिता चुन्नीलाल उनके भविष्य को लेकर थोड़े चिंतित हुये, उन्होंने धर्मपाल को कुछ काम सिखाने के क्रम में कपड़ों की दुकान, हार्डवेयर की दूकान , चावल फेक्ट्री में आदि में कई जगह पर लगाया, ताकि वे कुछ काम सीख सके, लेकिन धर्मपाल कहीं टिक कर काम न कर सके, अंत में पिता चुन्नीलाल ने उन्हें अपने साथ ही काम पर लगा दिया, और वे मसाला पीसने का काम करने लगे। पिता ने 18 वर्ष की आयु में उनका विवाह कर दिया।
धर्मपाल गुलाटी (Dharmpal Gulati)तांगा वाले से मसाला किंग बनाने की कहानी
देश के विभाजन के पश्चात धर्मपाल गुलाटी ( Dharmpal Gulati ) का परिवार वर्ष 1947 में दिल्ली, भारत आ गया, दिल्ली आते समया उनके पास मात्र 1500 रुपये थे, जिसमें से 650 रुपयों जीवन यापन हेतु उन्होंने तांगा ख़रीदा। वे न्यू दिल्ली से क़ुतुब रोड के बीच तांगा चलते थे, इस बीच वे आगे की प्लानिग करते रहे , मूलतः वे एक ब्यावसायी थे अतः तांगा वे ज्यादा दिनों तक नहीं चला पाए, और पुश्तेनी धंधे में लौट आये, उन्होंने अपना तांगा बेच दिया और उससे मिले पैसे से अजमलखां रोड पर लकड़ी की छोटी सी दूकान बना ली।
उस लकड़ी की छोटी सी दुकान में वह पूरी मेहनत से काम कर रहे थे, सियालकोट में उनकी दुकान अच्छी चलती थी , इसलिए यहाँ पर भी दुकान ज़माने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा, और उनकी दूकान चलने लगी, लोगो का विश्वास भी उनमे बढ़ता जा रहा था, पेपर में इश्तेहार देकर वे औए मशहूर हो गए, उनका ब्यापार बढ़ता जा रहा था, अबतक उनका परिवार पाने हाथों से मसाले कूटने और पिसने का कार्य करता था, लेकिन अब ये ब्यापार बढ़ने के साथ ये पर्याप्त नहीं था, 1968 में उन्होंने मसलों की एक फेक्ट्री खोल ली।
अबतक उनका मसालों का ब्यापार एक ब्रांड ” MDH ” ‘महाशयां दी हट्टी ‘ बन चुका था, उनके द्वारा तेयार किया गया मसाला भारत के साथ विदेशों में भी निर्यात होने लगा, MDH विश्व के 100 से अधिक देशों में 60 से अधिक प्रोडक्ट सप्लाई करता है।
स्वय धर्मपाल गुलाटी ( Dharmpal Gulati ) MDH प्रबंध निदेशक एवं ब्रांड अम्बेसडर थे। वे एक उदोग्पति होने के साथ साथ समाजसेवी भी थे, उन्होंने कई अस्पतालों और स्कूलों का निर्माण भी करवाया, महाशय धर्मपाल गुलाटी के जीवन का एक फलसफा है ” दुनियां को अपना सर्वश्रेस्ठ दो, और सर्वश्रेस्ठ स्वयं ही आपके पास वापस आयेगा।